क्षमा वीरस्य भूषणम्”
मैं एक दम्पत्ती को जानती हूँ जिन्होंने शादी के पूरे कार्यकाल में कभी शांतिपूर्ण बर्ताव नहीं किया. वे भाई साहब स्वयं एडवोकेट हैं, जिन्दगी भर लोगों के मसले
सुलझाते रहे, किन्तु अपने घर का मसला कभी सुलझा नहीं पाए. एडवोकेट साहब स्वयं ही बताया करते कि उनकी शादी से पूर्व जब जन्मपत्री मिलाई गई, तो पूरे 36 गुण मिले, किन्तु वे जीवन के 36 घण्टे भी अपनी पत्नी के साथ शांति व प्रेम से नहीं बैठ पाए. हर दिन परस्पर छींटाकशी पत्नी की तानाशाही, घर के काम-काज की अव्यवस्था, दिलों की ऐसी दूरिया बना चुकी थीं जो कभी पट ही नहीं पाईं.

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वे भाई साहब जब भी हमारे पास बैठते, ज्ञान-ध्यान की चर्चा कुछ देर बाद रुख बदल देती और वे अपनी पत्नी की आलोचनाएं करना शुरू कर देते. एक दिन हमने कहा- साक्क जी ! मुझे ऐसा लगता है कि अगले जन्म में भी आपको ये ही पत्नी मिलेंगी. इतनी बात सुनते ही तो वे घबरा गए, तुरन्त उत्तेजित होते हुए बोले- महाराज श्री जी! ऐसा तो मत कहो. हमने कहा- देखो, भाई साहब आप दिन-रात अपनी पत्नी की निंदा-चुगली व उपहास किया करते हैं, आपका ध्यान हमेशा पत्नी के दोषों को देखने में ही लगा रहता है, आप उन्हें क्षमा नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में ये ही सम्भव है कि आपको अपनी भावनाओं के अनुरूप फिर ऐसे ही गुण-पिण्ड से सम्बन्धित होना पड़ेगा, जो आज आपके ध्यान में है, वो कल आपके जीवन में होगा. यदि उस पत्नी को दोबारा जिन्दगी में नहीं लाने देना है, तो उसे अपने ध्यान पथ से हटा दो उसे क्षमा कर दो. वो जैसी है वैसी ही उसे स्वीकार कर लो, अपना पिछला ऋण भार समझकर शांति से उसकी अदायगी कर लो अन्यथा पुनः पुनः ऐसे प्रतिबंध होते जाएंगे और आपका जीवन दुःखमय बनता
जाएगा.

हमारी बात की समझ उनके भीतर पैदा हो गई और वे दोबारा पत्नी के दोषों की चर्चा करना छोड़ चुके थे. कहने का तात्पर्य यही है कि जिस रिश्ते को या
प्रतियोगिता दर्पण / अक्टूबर / 2020/5
-साध्वी वैभव श्री ‘विराट’
अनुबंध को आगे नहीं ले जाना है, carry forward नहीं करना है उसे यहीं क्षमा कर दो. आत्मा से भुला डालो अन्यथा वो भूत लिपट जाएगा व भविष्य बर्बाद कर देगा.
था, लेकिन जब मैंने महसूस किया कि मेरे अन्दर उनके प्रति गुस्सा मजबूत हो गया है, तो मैंने जाना कि अगर मैं उनके साथ नफरत करता रहा, तो जेल के उस गेट से बाहर जाने के बाद भी वे मेरे साथ ही रहेंगे. “मैं पूरी तरह आजाद होना चाहता था, इसलिए मैंने उस घटना को भुला दिया. यह मेरे जीवन का आश्चर्यजनक पल था. उस पल ने मुझे बदल कर रख दिया. ”

‘क्षमा’ वह आन्तरिक सद्गुण है, जो इस प्रकार क्षमा कर देने से वह पूरी हमें नकारात्मक भावनाओं के बोझ से मुक्त उनके साथ बना रहता – यादों में, बातों में, तरह आजाद हो चुके थे अन्यथा वह जेलर कर देता है. हमारी आन्तरिक ऊर्जा के – नकारात्मक प्रवाह को रोकने में समर्थ चर्चाओं में और फिर धीरे-धीरे भविष्य के है – क्षमा क्षमा करना अर्थात् दूसरों की कई सारे पन्नों में उसका चित्र उभर कर प्रतिक्रिया के प्रभावों को अपने चित्त पर आता. अच्छा यही है कि जिस बोझ को अंकित नहीं होने देना अपने शरीर और आप सुदूर भविष्य तक नहीं ढोना चाहते हो, आत्मा को दुरुस्त रखने के लिए क्षमा एक उसे क्षमा कर दो, क्षमा करना भी एक आवश्यक सद्गुण है. क्षमा कर देने से हम अर्जित संस्कार है जिसे बचपन से ही अतीत की विसंगतियों को भीतर में ग्रंथित अभिभावकों द्वारा अपने बालकों को सिखाना न करके उन्हें जाने देते हैं. अपने अतीत के जरूरी है. जिस घर-परिवार में माता-पिता लेखा-जोखा को मिटाते रहते हैं. ‘क्षमा’ परस्पर प्रेम व शांति से रहना जानते हैं, हमारी आंतरिक क्षमताओं को सकारात्मक एक-दूसरे की जीवन शैली को सम्मानित रूप से प्रवाहित करने के लिए एक आवश्यक करना जानते हैं उस परिवार के बालक भी नींव है. क्षमा किए बगैर कोई भी व्यक्ति क्षमा के संस्कारों से स्वयंमेव संस्कारित हो अपनी पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक व जाते हैं. बालकों के लिए परिवार ही प्रथम आध्यात्मिक जिंदगी सुख व शांति के साथ पाठशाला है, जिसमें रहकर वे सद्गुणों का नहीं जी सकता. पोषण पाते हैं. आगे चलकर ये ही सद्गुण परिवार, समुदाय समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व में मानवीय मूल्यों की स्थापना करने व नैतिक व आध्यात्मिक विकास में सहायक

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विश्व के सात महाद्वीपों में दक्षिण अफ्रीका नाम के एक बड़े महाद्वीप की पहली अश्वेत सरकार के राष्ट्रपति व नोबेल शांति पुरस्कार के विजेता नेल्सन मंडेला ने क्षमा के महत्व को अपने मन की गहराइयों से महसूस किया. एक बार अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने उनसे पूछा दक्षिण अफ्रीका में समानता और प्रजातिभेद को खत्म करने की लड़ाई में आपने रॉबेन द्वीप कैद खाने में 27 वर्ष बिताए, वहाँ के जेलर ने आपको प्रताडित किया, फिर भी जेल से छूटने के बाद आपने अपने सम्मान समारोह में जेलर को आमंत्रित करने के लिए सरकार पर दबाव डाला. इतना ही नहीं, जेल से छूटने के बाद आपने अपने समुदाय के लोगों से गोरे लोगों को क्षमा करने की गुजारिश की, लेकिन मुझे सच बताइए- क्या आपको अपने साथ हुए अन्याय पर कभी गुस्सा नहीं आया ? नेल्सन मंडेला ने उन्हें जो जवाब दिया वह बहुत ही अनुकरणीय व प्रेरणास्पद है. उन्होंने कहा- हाँ, मुझे गुस्सा आया था. मैं थोड़ा डर भी गया था. आखिर मैं बहुत लम्बे समय तक आजाद नहीं हुआ
बनते हैं.

क्षमा करने की अपार शक्ति बच्चों और शिक्षकों में होती है. बच्चे अपने माता- पिता, बहन-भाइयों, मित्रों की डाँट फटकार खाते हैं और भूल जाते हैं. एक प्रकार से वे क्षमा ही प्रदान करते हैं. इसी प्रकार गुरु (शिक्षक) अपने शिष्यों (विद्यार्थियों) के अपराधों को क्षमा कर देते हैं. किसी व्यक्ति से
शत्रुता का भाव रखने से अपना ही मन कलुषित होता है. क्षमा कर देने मात्र से मन निर्मल हो जाता है और व्यक्ति विकास पथ पर अग्रसर रहता है.
आज से हम सभी यह संकल्प करें कि रात को सोने से पहले हर उस व्यक्ति को, घटना को व निमित्त – हालात को क्षमा करके सोएंगे जिससे हम प्रकट या अप्रकट रूप से आहत हुए हैं, क्षमा द्वारा हम अपने भूत व भविष्य की शुद्धि कर पाएं – यही मंगल मनीषा.

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