जो बोलने योग्य नहीं है, वह सोचने योग्य भी नहीं है…

एक बार आत्मज्ञानी पूज्य श्री विराट से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया कि बीज का मोल कितना ??? पूज्य श्री विराट गुरुजी ने उस जिज्ञासु कहा कि बोल का मोल सम्पूर्ण लोक के नाम जितना जिस प्रकार यह ब्रह्माण्ड अनंत विस्तार है, निरंतर विस्तृत होता जा रहा है, जिसे चुनिक विज्ञान विस्तारशील ब्रह्माण्ड कहता ती […]